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Sunday, May 1, 2016

रिश्ते


कर लो चाहे
जितनी बड़ी बड़ी
बातें.......
लिख लो चाहे
जो मन को अच्छा लगे ,
पर सच तो ये है
रिश्तों मे उलझने
कम नहीं होती ,
हर किसी को
खुश करने के चक्कर मे
पीस जातें हैं
आंटे की चक्की में
 घुन की तरह  .........
हाँथ कुछ नहीं आता
सिवाये
अपनों की बातों की बेंत के .......
जो चाह कर भी
मन भूल नहीं पाता ,
घाव जो इतने गहरे
होते है
भरने के बाद भी
निशां छोड़ जातें हैं ,
काश ! हम
अपनों की बातें
प्यार से अपना पाते ,
या वो हमे प्यार से
समझा पाते ,
तो खिली धुप से
खिल उठते रिश्ते !!

रेवा


19 comments:

  1. रिश्तों के सत्य को बखूबी प्रस्तुत किया है, बहुत सुंदर रचना

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  2. रिश्तों के सत्य को बखूबी प्रस्तुत किया है, बहुत सुंदर रचना

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  3. सच बात रेवा अपनों के शब्दों के बेत बहुत गहरे घाव देते है ,बहुत ही सधे हुए शब्दों में बेहतरीन कविता :)

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 02 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  5. बहुत सुन्दर रचना । साधुवाद

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  6. बहुत सुन्दर रचना । साधुवाद

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  7. रिश्तों को बड़ी सुंदरता से परिभाषित किया आपने।

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  8. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (03-05-2016) को "लगन और मेहनत = सफलता" (चर्चा अंक-2331) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    श्रमिक दिवस की
    शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  9. रिश्ते अगर सुलझें हो तो बचपन के खेल से खिलखिलाते हैं ,पर अगर उलझ जाएँ तो भूलभुलैया ......

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  10. रेवा जी बहुत खूबसूरत रचना
    रिश्तों कि परिभाषा को बहुत ही खूबसूरत शब्दों में उतारा है आपने । बधाई ।

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