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Tuesday, August 20, 2013

रिश्ते




उलझन भरी ज़िन्दगी मे
सुकून का एहसास
दिलाते हैं रिश्ते ,
गम की धुप को
छाँव मे बदलते हैं रिश्ते ,
हालातों की मार को भी
प्यार भरी थपकी
देते हैं रिश्ते ,
हो अगर प्यार भरा
तो फिर जीना आसां
करते हैं रिश्ते ,
पर सब रिश्तों से बड़ा है
खुद से खुद का रिश्ता
अगर ये बन जाये तो
"प्रयासों के गीत से
जीवन को संगीत बना दे ये रिश्ते "

रेवा


22 comments:

  1. खुद से जुड़ना ही कई रिश्तों के नींव है!

    सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति!
    आपको रक्षा बंधन की बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  3. aap ne bhut achi kavita likhi ha.

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  4. रिश्ते न हों तो जेवण नीरस हो जाता है ...
    इनकी अहमियत को समझना ओर निभाना जरूरी है ...

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  5. बहुत ही बढिया कविता ! शब्दों और भावों का लाजवाब संयोजन !!
    रक्षाबंधन की ढेर सारी शुभकामनाएं !!!!

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  6. अनुपम भाव संयोजन ....

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  7. बहुत ही भावपूर्ण रक्षा बंधन की बधाई ओर शुभकामनायें ...

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  8. बहुत ही सुंदर,रक्षा बंधन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ !

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  9. ''सबसे बड़ा खुद से खुद का रिश्ता''

    रेवा जी, बहुत सुन्दर शब्द संजोये आपने
    रिश्तों के लिए.
    सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई।

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  10. आपके ब्लॉग को ब्लॉग"दीप" में शामिल किया गया है ।
    जरुर पधारें ।

    ब्लॉग"दीप"

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  11. राखी की हार्दिक शुभकामनायें .........

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  12. रेवा जी, बहुत ही अच्छे विचार.जिन्दगी की उलझनों से मुक्ति स्वयं
    को समझने से ही सम्भव है.

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  13. बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......

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  14. कल 22/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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  15. बहुत भाव पूर्ण सुन्दर

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  16. ख़ूबसूरत खयालातों से तरबतर रचना

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